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भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का महत्व

भारतीय राष्ट्रीय ध्वज

            इसमें इस्तेमाल होने वाले तीन रंग हैं, केसरिया, सफेद और हरा। इसे 15 अगस्तत 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्ट्रीवय ध्वज के रूप में अपनाया गया। तिरंगे का निर्माण हमेशा रेक्टेंगल शेप में ही होगा, जिसका अनुपात 3:2 तय है। ध्वज में अशोक चक्र का कोई माप तय नही हैं सिर्फ इसमें 24 तिल्लियां होनी आवश्यक हैं भारत के संविधान के अनुसार जब किसी राष्ट्र विभूति का निधन होने और राष्ट्रीय शोक घोषित होने पर कुछ समय के लिए ध्वज को झुका दिया जाता है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज में भगवा रंग शक्ति और साहस का प्रतिनिधित्व करता है।1921 में, पिंगली वेंकय्या ने पहली बार महात्मा गांधी को राष्ट्रीय ध्वज का एक मूल डिजाइन प्रस्तुत किया। ध्वज को अंतिम रूप से अपनाने से पहले विभिन्न नेताओं के इनपुट के आधार पर कुछ परिवर्तनों के माध्यम से चला गया।सफेद मध्य बैंड धर्म चक्र / अशोक चक्र के साथ शांति और सच्चाई को इंगित करता है । सफेद बैंड के केंद्र में एक नौसेना-नीला पहिया है जो चक्र का प्रतिनिधित्व करता है । चक्र से पता चलता है कि अशोक द्वारा उपदेश के रूप में गति में जीवन और गति में जीवन है। अशोक चक्र में 24 प्रवक्ता हैं। आखिरी पट्टी हरे रंग की होती है जो भूमि की उर्वरता, वृद्धि और शुभता को दर्शाती है। 22 जुलाई 1947 को आयोजित संविधान सभा की बैठक के दौरान भारत के राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया गया था। ध्वज की चौड़ाई की लंबाई का अनुपात तीन अनुपात दो (3: 2) है।


तिरंगा: विजय का प्रतीक

            तिरंगा हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक रहा है, जो हमें स्वतंत्रता के लिए महान स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए संघर्षों और बलिदानों की याद दिलाता है। अपने हाथों में झंडा लेकर, हमने अपने देश के लिए आजादी जीती, और समय के साथ, यह जीवन के हर क्षेत्र में हमारी जीत का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया। चाहे वह क्रिकेट मैच हो, या ओलंपिक में उपलब्धि; चाहे वह विदेश में संगीत कार्यक्रम हो, या अंतरिक्ष और विज्ञान में उपलब्धि हो; घर पर हो या विदेशी धरती पर कोई कार्यक्रम, हमेशा तिरंगा फहराकर ही जीत का जश्न मनाया जाता है। उस समय से जब भारत ने 15 अगस्त 1947 की आधी रात को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की, हर विजयी घटना को तिरंगा फहराने से चिह्नित किया गया है। यह हमारी जीत का एक औपचारिक प्रतीक बन गया है, जो प्रत्येक भारतीय को देशभक्ति के एक सूत्र में बांधता है। चाहे वह 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध हो या 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति का अवसर; या उस बात के लिए 1999 में कारगिल में ऑपरेशन विजय, भारत की जीत को हमेशा आसमान में तिरंगा फहराकर मनाया जाता था। आजादी के बाद, जब भारत ने ओलंपिक में पहला स्वर्ण जीता, तो राष्ट्रीय ध्वज लहराते हुए गौरव और उत्सव को एक शानदार प्रतिबिंब मिला। वर्षों बाद, जब अभिनव बिंद्रा ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक में पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग में स्वर्ण पदक हासिल किया; और जब नीरज चोपड़ा ने 2020 के टोक्यो ओलंपिक में पुरुषों के भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीता, तो इन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर राष्ट्रीय ध्वज गर्व से ऊंचा था। इसी तरह, जब भारतीय क्रिकेट टीम ने 1983 में पहली बार विश्व कप जीता, तो तिरंगे की ऊंची उड़ान के माध्यम से गर्व और उत्सव की भावना परिलक्षित हुई। यह एक सुंदर परंपरा बन गई, और जब भारत ने पहला टी -20 विश्व कप जीता, तो गर्व से फहराने वाले तिरंगे में गर्वित राष्ट्र की भावनाओं को समान प्रतिबिंब मिला। चंद्रयान, या मंगलयान के सफल प्रक्षेपण पर, तिरंगा ने फिर से गर्वित राष्ट्र की भारी भावनाओं का प्रतिनिधित्व किया। राष्ट्रीय ध्वज को आसमान में लहराने से देशभक्ति और एकजुटता की भावना परिलक्षित होती है। इस धारणा से प्रेरित होकर, भले ही प्रत्येक भारतीय के मन में राष्ट्रीय ध्वज के प्रति गहरा सम्मान और निष्ठा है। राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन पर लागू होने वाले कानूनों, प्रथाओं और सम्मेलनों के संबंध में न केवल लोगों के बीच बल्कि सरकार के संगठनों/एजेंसियों में भी जागरूकता की कमी अक्सर देखी जाती है। पूरे उत्साह के साथ और सभी समारोहों के बीच, हमें भारत के ध्वज संहिता में निर्धारित मानदंडों का पालन करने की आवश्यकता है और ध्यान रखना चाहिए कि जब राष्ट्रीय ध्वज क्षैतिज रूप से फहराया जाए, तो भगवा बैंड हमेशा शीर्ष पर दिखाई दे। इसे पानी में जमीन, फर्श या पगडंडी को नहीं छूना चाहिए। तिरंगा हमें हमारी गहरी जड़ें जमाए हुए राष्ट्रीय विचारधारा की याद दिलाता है, जिसने उस भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसे हम आज जानते हैं।


भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को तिरंगा क्यों कहा जाता है?

            भारत का राष्ट्रीय ध्वज तीन रंगों का होता है, जिसे तिरंगा भी कहा जाता है। इसमें तीन रंग यानी सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और सबसे नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी मौजूद होती है। इसमें केसरिया रंग 'त्याग और बलिदान', सफेद रंग ‘शांति, एकता और सच्चाई‘ वहीं हरा रंग ‘विश्वास और उर्वरता‘ का प्रतीक है। तिरंगे के बीचो-बीच बने नीले रंग के चक्र का भी अपना महत्व होता है, जिसे अशोक चक्र भी कहा जाता है।

तिरंगा के तीन रंगों का महत्व

            राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में तीन रंग केसरिया, सफेद और हरा समाहित हैं। इन तीन रंगों का अपना महत्व है और इनके दार्शनिक मायने भी निकाले जाते हैं। राष्ट्रध्वज के निर्माताओं ने देश को एक सूत्र में बांधने के लिए बहुत सोच-समझकर इन तीन रंगो और अशोक चक्र का उपयोग किया। तिरंगे में मौजूद केसरिया रंग को साहस और बलिदान का प्रतीक माना जाता है। वहीं सफेद रंग सच्चाई, शांति और पवित्रता की न‍िशानी है। तिरंगे के तीसरे यानी हरे रंग को सन्पन्नता का प्रतीक माना जाता है। ये रंग मिलकर देश के गौरव का प्रतीक बनाते हैं और भाईचारे के संदेश के साथ ही जीवन को लेकर ज्ञान भी देते हैं।

तिरंगे के केसरिया रंग का महत्व

            आध्यात्म से सराबोर रंग है केसरिया, केसरिया रंग को बलिदान का प्रतीक कहते हैं। यह रंग राष्ट्र के प्रति हिम्मत और निस्वार्थ भावनाओं को दिखाता है। यह रंग बौद्ध और जैन जैसे धर्मों के लिए धार्मिक महत्व का रंग है। हालांकि यह रंग सभी धर्मों के अहंकार को मुक्ति और त्याग का भी संदेश देता है और लोगों में एकता बनाने का भी यह प्रतीक माना जाता है। केसरिया रंग को आध्यात्म और उर्जा का प्रतीक भी माना जाता है। हिन्दू, बुद्ध, सिख - सभी इस रंग को अपने करीब मानते हैं। आम भाषा में केसरिया रंग को संतरी रंग भी कहा जाता है। इसे हिंदू धर्म की निशानी भी मानते हैं। आमतौर पर किसी भी साधु, ऋषि, मुनि या मंदिर के पंडित को केसरी वस्त्र में ही देखा जाता है जिसकी अलग महत्ता है। पूजा-अर्चना के दौरान केसरी रंग के वस्त्र पहनने की मान्यता है। हिन्दू मान्यताओं के आधार पर केसरी रंग अग्नि का प्रतीक है। मनुष्य हवन कुंड में जल रही अग्नि के जरिए ही परमात्मा का बोध करता है। इस आधार पर भी केसरी रंग को आधायत्‍म से जोड़ा जाता है। 


तिरंगे के सफेद रंग का महत्व

            सद्भाव की न‍िशानी है सफेद रंग, भारतीय तिरंगे के बीच में रहता है सफेद रंग जो शांति और ईमानदारी का प्रतीक माना गया है। भारतीय दर्शन शास्त्र के मुताबिक, सफेद रंग को स्वच्छता और ज्ञान का भी प्रतीक माना गया है। मार्गदर्शन और सच्चाई की राह पर हमेशा चलना चाहिए। 


तिरंगे के हरे रंग का महत्व

            खुशहाली और प्रगति का प्रतीक हरा रंग, तिरंगे के सबसे नीचे हरा रंग विश्वास, उर्वरता, खुशहाली, समृद्धि और प्रगति का प्रतीक है। दर्शन शास्त्र के अनुसार, हरे रंग को उत्‍सव के माहौल से भी जोड़ा जाता है। तो फेंगशुई के मुताबिक हरा रंग कई बीमारियों से भी राहत दिलाता है। हरा रंग पूरे भारत में हरियाली को दर्शाता है और आंखों को सुकून भी देता है। जिस प्रकार प्रकृति जीवन का संदेश देती है, उसी प्रकार इस रंग से भी जीवन का गहरा संबंध है। फेंगशुई की मानें तो हरा रंग बीमार व्यक्तियों के लिए जीवनदायी औषधि सरीखा है। फेंगशुई ने इसे विकास, स्वास्थ्य और सौभाग्य का भी प्रतीक माना है। हरे रंग में बेरियम, क्लोरोफिल, तांबा, नाइट्रोजन और निक्कल जैसे तत्व पाए जाते हैं। साथ ही इस रंग के बारे में कहा जाता है कि यह ड‍िप्रेशन यानी अवसाद से भी व्‍यक्‍त‍ि को दूर रखता है। हरा रंग भावनात्मक रूप से राजसी ठाठ और निरंकुशता की प्रकृति को प्रदर्शित करता है। 

राष्ट्रीय ध्वज में धर्म चक्र के 24 प्रवक्ता

            एक राष्ट्र की पहचान के रूप में एक झंडा खड़ा होता है। यद्यपि कई संगठन, समुदाय, सशस्त्र बल, कार्यालय या व्यक्ति अनादि काल से अपने झंडों का उपयोग करते रहे हैं, आज लोग अपने राष्ट्रीय झंडों के साथ पेज 1 को और जोड़ते हैं। राष्ट्रीय ध्वज किसी समुदाय या कार्यालय तक सीमित नहीं है। इसके बजाय, यह एक राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक का है। भारत ने अपने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में केंद्र में एक चक्र के साथ एक तिरंगे झंडे को अपनाया, जो राष्ट्र के गौरव का प्रतिनिधित्व करता है। हमारा राष्ट्रीय ध्वज हमें स्वतंत्रता के लिए देश के लंबे संघर्ष की याद दिलाता है। देश के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यह राष्ट्रवादियों के बीच एकजुटता का प्रतीक था और आज स्वतंत्र भारत में यह एकता और देशभक्ति का प्रतीक बन गया है। हमारा झंडा समान चौड़ाई के तीन रंग बैंडों से बना है: सबसे ऊपर केसरिया (केसरी), बीच में सफेद और सबसे नीचे हरा है। सफेद पट्टी के केंद्र में 24 तीलियों (धर्म चक्र) के साथ एक गहरे नीले रंग का पहिया होता है। केसरिया या केसरी रंग शक्ति और साहस का प्रतीक है, जबकि बीच में सफेद रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है। नीचे का हरा रंग उर्वरता और वृद्धि का प्रतीक है। सफेद पट्टी के केंद्र में गहरे नीले रंग का धर्म चक्र 24 तीलियों से बना है।

 यह गति को दर्शाता है, जो लगातार प्रयासों और प्रगति को दर्शाता है। यह 'कानून का पहिया' महान मौर्य सम्राट अशोक की सिंह राजधानी से लिया गया है, जिसे वाराणसी के पास सारनाथ में खोजा गया था। हमारा राष्ट्रीय ध्वज न केवल हमारे राष्ट्रीय गौरव के रूप में खड़ा है, बल्कि एक प्रेरक शक्ति के रूप में भी कार्य करता है, जो हमें शक्ति और साहस, शांति और सच्चाई, उर्वरता और विकास और राष्ट्र निर्माण की दिशा में निरंतर प्रयासों के लिए प्रोत्साहित करता है। भारतीय ध्वज संहिता के अनुसार, राष्ट्रीय ध्वज आकार में आयताकार होना चाहिए। इसकी चौड़ाई से इसकी लंबाई का अनुपात दो से तीन है। भारत का राष्ट्रीय ध्वज हाथ से काते हुए और हाथ से बुने हुए ऊन/कपास/रेशम खादी की पट्टी से बना होना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज के लिए हाथ से बुनी हुई खादी का निर्माण शुरू में उत्तरी कर्नाटक के धारवाड़ जिले के एक छोटे से गाँव गराग में किया गया था। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज अपने वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को संवैधानिक सभा की बैठक में अपनाया गया था। इसने पहली बार 15 अगस्त 1947 से 26 जनवरी 1950 तक भारत के डोमिनियन के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में और उसके बाद राष्ट्रीय ध्वज के रूप में कार्य किया। भारत की स्वतंत्रता। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज एक स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकय्या द्वारा डिजाइन किए गए ध्वज पर आधारित है, जो महात्मा गांधी के कट्टर अनुयायी थे। उनका जन्म वर्तमान आंध्र प्रदेश में मछलीपट्टनम के पास भाटलापेनुमरु में हुआ था।


अशोक चक्र का रंग कैसा होता है?

            हम सभी को बचपन से ही इन सभी रंगों और महत्व के बारे में बताया जाता है, लेकिन बड़े होने तक बेहद कम लोग ही इसे याद रख पाते हैं। ऐसे में क्या आपको मालूम है कि अशोक चक्र का रंग नीला ही क्यों होता है और तिरंगे पर इस रंग का महत्व क्या है? आज हम आपको इसके बारे में कई जरूरी बातें बताने जा रहे हैं। तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं। नीले रंग का अशोक चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ में स्थापित शेर के स्तंभ पर बना हुआ है। इसका व्यास तिरंगे के बीच सफेद रंग की पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है, जिसमें 24 तीलियां होती हैं। दरअसल, सम्राट अशोक के बहुत से शिलालेखों पर एक चक्र बना हुआ दिआई देता है, इसे वहीं से लिया गया है।

वहीं इसके रंग के बारे में बात की जाए, तो कहा गया है कि नीला रंग आकाश, महासागर और सार्वभौमिक सत्य को दर्शाता है। यही कारण है कि राष्ट्रीय ध्वज की सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का अशोक चक्र स्थित होता है। वहीं इसमें बनी 24 तीलियां मनुष्य के 24 गुणों को दर्शाती हैं। अशोक चक्र की 24 तीलियों से ही मनुष्य के लिए बनाये गए 24 धर्म मार्ग की तुलना की गई है। इसलिए इन्हें मनुष्य के लिए बनाये गए 24 धर्म मार्ग भी कहा जाता है। साथ ही ये समाज के चहुमुखी विकास के प्रति देशवासियों को उनके अधिकारों व कर्तव्यों के बारे में भी बताती हैं।

अशोक चक्र को कब अपनाया गया

            तिरंगे को लेकर एक और खास बात ये है, कि राष्ट्रीय ध्वज के लिए अशोक चक्र से पहले चरखे को चुना गया था। लेकिन जब राष्ट्र ध्वज के निर्माताओं ने इसका अंतिम रूप तैयार किया, तो झंडे के बीच में चरखे को हटाकर इस अशोक चक्र को स्थापित किया गया। जिसके बाद 22 जुलाई 1947 के दिन संविधान सभा ने इस तिरंगे को देश के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया था।

राष्ट्रीय ध्वज का डिजाइन किसने तैयार किया

भारत के राष्ट्रीय ध्वज का डिजाइन स्व तंत्रता संग्राम सेनानी "पिंगाली वेंकैया" ने किया था। जानकारी के लिए बता दे की पांच वर्षों तक तकरीबन 30 देशों के राष्ट्री य ध्व ज के बारे में गहराई से रिसर्च करने के बाद वर्ष 1921 में भारतीय राष्ट्रीतय कांग्रेस के सम्मेोलन में पिंगाली वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज "Tiranga" के बारे में पहली बार अपनी संकल्पटना को पेश किया था।


पिंगाली वेंकैया के बारें में :

पिंगाली का जन्म 2 अगस्तय, 1876 को आंध्र प्रदेश के मछलीपत्त्नम के निकटवर्ती एक गांव में हुआ था।
उन्होंने महज 19 वर्ष की उम्र में सबसे पहले ब्रिटिश आर्मी को ज्वाइन किया था।
पिंगाली वेंकैया का वर्ष 1963 में बेहद गरीबी में निधन हुआ।
वर्ष 2009 में उन पर एक डाक टिकट जारी हुआ।

राष्ट्रीय ध्वज फहराने के नियम :

भारत में 'फ्लैग कोड ऑफ इंडिया' (भारतीय ध्वज संहिता) नाम का एक कानून है, जिसमें तिरंगे को फहराने के नियम निर्धारित किए गए हैं। इन नियमों का उल्लंघन करने वालों को जेल भी हो सकती है....

तिरंगा हमेशा कॉटन, सिल्क या फिर खादी का ही होना चाहिए।
प्लास्टिक का झंडा बनाने की मनाही है।
झंडे पर कुछ भी बनाना या लिखना गैरकानूनी है।
किसी भी गाड़ी के पीछे, बोट या प्लेन में तिरंगा नहीं लगाया जा सकता।
तिरंगे का प्रयोग किसी बिल्डिंग को ढकने के लिए नही किया जा सकता है।
तिरंगा झंडा किसी भी सूरत में जमीन से टच नही होना चहिये।


तिरंगे का इतिहास काफी पुराना है। पहली बार इसे 1906 में बनाया गया। हालांकि इसके रूप में कई बार परिवर्तन भी होता आया है। देश इस बार 26 जनवरी को अपना 75वां गणतंत्र दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाने जा रहा है।आज 'हर घर तिरंगा' कार्यक्रम के तहत जब हम हर घर में तिरंगा फहराने की ओर बढ़ते हैं, तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह किसी भी रूप में क्षतिग्रस्त न हो, और कोई दूसरा झंडा ऊपर, या इससे ऊंचा नहीं रखा जाना चाहिए। हमारे राष्ट्रीय ध्वज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर।


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