ऋषि कश्यप
ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस-पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। इनकी माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। मान्यता अनुसार इन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। कश्यप ऋषि को ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माना गया हैं। ऋषि कश्यप एक ऐसे ऋषि थे जिन्होंने बहुत-सी स्त्रीयों से विवाह कर अपने कुल का विस्तार किया था। आदिम काल में जातियों की विविधता आज की अपेक्षा कई गुना अधिक थी। पुराणों अनुसार हम सभी ऋषि कश्यप की ही संतानें हैं। सुर-असुरों के मूल पुरुष ऋषि कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहाँ वे परब्रह्म परमात्मा के ध्यान में लीन रहते थे। समस्त देव, दानव एवं मानव ऋषि कश्यप की आज्ञा का पालन करते थे। कश्यप ने बहुत से स्मृति-ग्रंथों की रचना की थी। माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्मीर का प्राचीन नाम था। समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजाओं का साम्राज्य भी था।
कश्यप कथा :
पुराण अनुसार सृष्टि की रचना और विकास के काल में धरती पर सर्वप्रथम भगवान ब्रह्माजी प्रकट हुए। ब्रह्माजी से दक्ष प्रजापति का जन्म हुआ। ब्रह्माजी के निवेदन पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पत्नी असिक्नी के गर्भ से 66 कन्याएँ पैदा की। इन कन्याओं में से 13 कन्याएँ ऋषि कश्यप की पत्नियाँ बनीं। मुख्यत इन्हीं कन्याओं से सृष्टि का विकास हुआ और कश्यप सृष्टिकर्ता कहलाए। ऋषि कश्यप सप्तऋषियों में प्रमुख माने जाते हैं। विष्णु पुराणों अनुसार सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार रहे हैं- वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज। श्रीमद्भागवत के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी साठ कन्याओं में से 10 कन्याओं का विवाह धर्म के साथ, 13 कन्याओं का विवाह ऋषि कश्यप के साथ, 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ, 2 कन्याओं का विवाह भूत के साथ, 2 कन्याओं का विवाह अंगीरा के साथ, 2 कन्याओं का विवाह कृशाश्व के साथ किया था। शेष 4 कन्याओं का विवाह भी कश्यप के साथ ही कर दिया गया। महाभारत और विष्णु पुराण के अनुसार ऋषि कश्यप की पत्नीयाँ : अदिति, दिति, दनु, अनिष्ठा, काष्ठा, सुरसा, इला, मुनि, सुरभि, कद्रू, विनता, यामिनी, ताम्रा, तिमि, क्रोधवशा, सरमा, पातंगी, आदि सत्रह पत्नियाँ बनीं।
1. अदिति :
अदिति दक्ष प्रजापति की सबसे बड़ी पुत्री थी। इनका विवाह ऋषि कश्यप से हुआ था। अदिति की १६ सपत्नी थीं। जिनमे एक का नाम दिति था। इनकी सपत्नी इनकी बहन भी थीं। दिति के पुत्र दैत्य कहलाते हैं ( दितेः पुत्राः दैत्याः)। अदिति के बारह पुत्र हुए जिनमें से मित्र, वरुण, धाता, अर्यमा, अंश, भग, विवस्वान्, आदित्य, इन्द्र, वामन इत्यादि प्रमुख हैं। खगोलीय दृष्टि से अन्तरिक्ष में द्वादश आदित्य भ्रमण करते हैं, वे आदित्य अदिति के पुत्र हैं। अदिति के पुण्यबल से ही उनके पुत्रों को देवत्व प्राप्त हुआ। अदिति का एक पुत्र उनके गर्भ में ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था। परन्तु अदिति ने अपने तपोबल से उसे पुनरुज्जीवित किया था। उस पुत्र का नाम मार्तण्ड था। वह मार्तण्ड विश्वकल्याण के लिये अन्तरिक्ष में गतमान् है| पुराणों अनुसार कश्यप ने अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से बारह आदित्यों को जन्म दिया, जिनमें भगवान नारायण का वामन अवतार भी शामिल था। माना जाता है कि चाक्षुष मन्वन्तर काल में तुषित नामक बारह श्रेष्ठगणों ने बारह आदित्यों के रूप में जन्म लिया, जो कि इस प्रकार थे- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। ऋषि कश्यप के पुत्र विस्वान से मनु का जन्म हुआ। महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्शु, नाभाग, दिष्ट, करूष और पृषध्र नामक दस श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई।
2. दिति :
दिति कश्यप की पत्नी थी। सन्ध्या समय जब कश्यप यज्ञ में खीर की आहुतियां दे रहे थे, दिति कामासक्त थी। कश्यप के बहुत समझाने पर भी कि यह 'भूत भ्रमण काल है', दिति समागम का आग्रह करती रही। कश्यप ने पत्नी की बात मान ली। कालांतर में काममुक्त होकर दिति अपने कृत्य के लिए लज्जा तथा खेद का अनुभव करती हुई पति के पास गयी। मुनि ने कहा कि असमय में संभोग करने के कारण उसके पुत्र दैत्य होंगे तथा भगवान के हाथों मारे जायेंगे। चार पौत्रों में से एक भगवान का प्रसिद्ध भगवद्भक्त होगा। दिति को आशंका थी कि उसके पुत्र देवताओं के कष्ट का कारण बनेंगे, अत: उसने सौ वर्ष तक अपने शिशुओं का उदर में ही रखा। तदनंतर सब दिशाओं में अंधकार फैल गया, अत: देवताओं ने ब्रह्मा से जाकर प्रार्थना की कि उसका निराकरण करें। ब्रह्मा ने कहा कि पूर्वकाल में सनकादि मुनियों को बैकुंठ धाम में छ: सीढ़ियों के ऊपर जाने से विष्णु के पार्षदों ने अज्ञानतावश रोक दिया था। सनकादि आयु में, संसार में सबसे बड़े होने पर भी पांच ही वर्ष के दिखलायी पड़ते थे। वे लोग विष्णु के दर्शनाभिलाषी थे। उन्होंने कृद्ध होकर उन दोनों को पार्षद का पद छोड़कर पापमय योनि में जन्म लेने को कहा था। वे जय-विजय नामक पार्षद व बैकुंठ से पतित होकर दिति के गर्भ में बड़े हो रहे हैं। तदनंतर सृष्टि में भयानक उत्पात के उपरांत दिति के गर्भ से हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष का जन्म हुआ। जन्म लेते ही दोनों पर्वत के समान दृढ़ तथा विशाल हो गये। हिरण्याक्ष के हनन के समय दिति के स्तन से रूधिर प्रवाहित होने लगा था।अपने पुत्रों की हत्या से दु:खी दिति मरीचि के पुत्र कश्यप के पास गयी और कहा कि अदिति के पुत्रों ने उसके पुत्रों को मार डाला है। वह अपने पति से ऐसे गर्भ की इच्छुक है, जिससे उत्पन्न बेटा इन्द्र की हत्या कर डाले। कश्यप ने स्वीकार कर लिया तथा पुत्र-जन्म तक पवित्रता से रहने का आदेश दिया। पुत्र-जन्म एक हज़ार वर्ष बाद होना था। दिति कुशप्लव नामक तपोवन में तपस्या करने लगी। इन्द्र ने उसे अपनी सेवा से प्रसन्न कर लिया। पुत्र-प्राप्ति से दस वर्ष पूर्व दिति ने इन्द्र से कहा कि उसकी सेवा से प्रसन्न होकर वह अपने पुत्र को उसका वध नहीं करने देगी। दिति पायताने की ओर सिर करके सो गयी। इन्द्र ने ऐसी अपवित्र स्थिति में उसे सोते देखा तो उसके गर्भ में प्रवेश कर बालक के सात टुकड़े कर डाले। बालक के चिल्लाने पर दिति जाग गयी। इन्द्र ने विनीत भाव से कहा कि इन्द्र का वध करने वाले गर्भस्थ शिशु के सात टुकड़े इस कारण किये कि वह अशुचितापूर्वक पायताने पर सिर रखकर सो रही थी। लज्जित होकर दिति ने इस कर्म का परिमार्जन करने की प्रार्थना की। दिति ने कहा कि उसके सात दिव्यरूपधारी बेटे हों जो 'मारूत' कहलाएं क्योंकि गर्भ को काटते हुए इन्द्र ने 'मारूत' (रो मत) कहा थां इनमें से चार इन्द्र के अधीन रहकर चारों दिशाओं में विचरें। शेष तीन में से दो क्रमश: ब्रह्मलोक तथा इन्द्रलोक में विचरें और तीसरा महायशस्वी दिव्य वायु के नाम से विख्यात हो। कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री को जन्म दिया। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरुन्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र निसंतान रहे। जबकि हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद।
3. दनु :
ऋग वेद की मान्यता के अनुसार दनु पूर्व काल की एक देवी थी। वह दानवों की माँ थी जो देवों के विरुद्ध उठ खड़े हुए थे। बाद के समय में वह दक्ष की पुत्री और कश्यप की तीसरी पत्नी बताई गई है। इसी नाम से नेपाल में एक नदी भी पाई जाती है। दनु के गर्भ से उत्पन्न महर्षि कश्यप के दानव पुत्र निम्नलिखित हैं ऋषि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से रंभ, करंभ, शुम्भ, निशुम्भ, नमुचि, हयग्रीव, स्वरभानु, वैप्रिचिती, दैत्यराज, कालकेतु द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान पुत्रों की प्राप्ति हुई।
4. सुरसा ( असुर माता ):
दक्ष प्रजापति की ८४ कन्याओं में से १७ कन्याओं का विवाह महर्षि कश्यप के साथ किया गया था जिनमें से एक सुरसा भी थीं। सुरसा ने राक्षसों को जन्म दिया था जो देवताओं के विरुद्ध उठ खड़े हुए थे। सुरसा के पुत्रों के रूप में प्रसिद्ध राक्षस हेति , प्रहेति तथा मधु और कैटभ का जन्म हुआ था। सुरसा की गलत शिक्षाओं के कारण ही राक्षस देवताओं के विरुद्ध उठ खड़े हुए थे। वैसे राक्षसों का जीवन दैत्य और दानवों से बेहतर बताया गया है। पुराणों में कहा गया है कि दैत्य बहुत बर्बरता और निरंकुश जाति बताई गई है तथा दानव को मानवों का मांस खाना और तथा लूट पाट करने का शौक था और राक्षस जाति तीनों असुर जातियों में सुसंस्कारी मानी गई है और ये विद्वान बताए गए हैं। राक्षस जाति में रावण को सबसे विद्वान बताया गया है।
5. सुरभि (कामधेनु)
हिन्दू धर्म में एक देवी है जिनका स्वरूप गाय का है। इन्हें 'सुरभि' भी कहते हैं। कामधेनु जिसके पास होती हैं वह जो कुछ कामना करता है (माँगता है) उसे वह मिल जाता है। (काम = इच्छा , धेनु=गाय)। इनके जन्म के बारे में अलग-अलग कथाएँ हैं। एक कथा के अनुसार ये समुद्र मन्थन में निकलीं थीं। इनकी बेटी का नाम नन्दिनी है। कामधेनु दक्ष प्रजापति की कन्या और महर्षि कश्यप की पत्नी तथा गौ और महिष तथा भगवान शिव के ग्यारह रुद्रावतारों की माता हैं। जो ग्यारह रुद्र कामधेनु से उत्पन्न हुए थे उनके नाम हैं -:कपाली, पिन्गल, भीम, विरूपाक्ष, अजपाद, अहिर्बंधुन्य, शम्भू, चन्ड, भव, शास्ता, विलोहित.
6. कद्रू:
दक्ष प्रजापति की कन्या, महर्षि कश्यप की पत्नी। पौराणिक इतिवृत्त है कि एक बार महर्षि कश्यप ने कहा, 'तुम्हारी जो इच्छा हो, माँग लो'। कद्रू ने एक सहस्र तेजस्वी नागों को पुत्र रूप में माँगा कद्रू की कोख से बहुत से नागों की उत्पत्ति हुई, जिनमें प्रमुख आठ नाग थे-अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। (महाभारत, आदिपर्व, 16-8)। श्वेत उच्चैःश्रवा घोड़े की पूँछ के रंग को लेकर कद्रू तथा विनता में विवाद छिड़ा। कद्रू ने उसे काले रंग का बताया। हारने पर दासी होने की शर्त ठहरी। कद्रू ने अपने सहस्र पुत्रों को आज्ञा दी कि वे काले रंग के बाल बनकर पूँछ में लग जाय जिन नागों ने उसकी आज्ञा नहीं मानी उन्हें उसने शाप दिया कि पांडववंशी बुद्धिमान राजर्षि जनमेजय के नागसत्र में प्रज्वलित अग्नि उन्हें जलाकर भस्म कर देगी। शीघ्रगामिनी कद्रू विनता के साथ उस समुद्र को लाँघकर तुरंत ही उच्चैःश्रवा घोड़े के पास पहुँच गई। श्वेतवर्ण के महावेगशाली अश्व की पूँछ के घनीभूत काले रंग को देखकर विनता विषाद की मूर्ति बन गई और उसने कद्रू की दासी होना स्वीकार किया। कद्रू विनता तथा विनता के पुत्र गरुड की पीठ पर बैठकर नागलोक देखने गए। गरुड़ इतनी ऊँचाई पर उड़े कि नागों को सूर्य के ताप के कारण मूर्छा आने लगी। कद्रू ने मेघवर्षा के द्वारा तापशमन करने के लिए इंद्र की स्तुति की।
7. विनता
हिन्दू दंतकथाओं के अनुसार विनता सभी पक्षियों की माँ है। वो दक्ष प्रजापति की साठ पुत्रियों में से एक थीं। उनका अपनी 16 बहनों सहित कश्यप से विवाह हुआ। उनके दो पुत्र हुये जिनमें बड़े का नाम अरुण और छोटे का नाम गरुड़ है।[ के गर्भ से गरुड़ (विष्णु का वाहन) और वरुण (सूर्य का सारथि) पैदा हुए।
8. ताम्रा ने बाज
ताम्रा ने बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति की। रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया। तिमि ने जलचर जन्तुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया।
9. रानी पतंगी
रानी पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ। यामिनी के गर्भ से शलभों (पतंगों) का जन्म हुआ। ब्रह्माजी की आज्ञा से प्रजापति कश्यप ने वैश्वानर की दो पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जो कि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए। माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्मीर का प्राचीन नाम था। समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजाओं का साम्राज्य भी था। कश्यप ऋषि के जीवन पर शोध किए जाने की आवश्यकता है। इति।
अन्य पत्नीयाँ :
रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। पत्नी अरिष्टा से गंधर्व पैदा हुए। सुरसा नामक रानी से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। मुनि के गर्भ से अप्सराएँ जन्मीं। कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने साँप, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किए।
कश्यप का अवतार वसुदेव के रूप में
ऋषि कश्यप ने भगवान कृष्ण के पिता वसुदेव के रूप में अवतार लिया, एक श्राप के कारण जो भगवान ब्रह्मा ने उन्हें दिया था। एक बार, ऋषि ने दुनिया में प्राणियों के कल्याण के लिए देवताओं को आहुति देने के लिए अपने आश्रम में एक यज्ञ (एक वैदिक अनुष्ठान) किया। अनुष्ठान करने के लिए, ऋषि कश्यप को दूध, घी आदि जैसे प्रसाद की आवश्यकता थी, जिसके लिए उन्होंने भगवान वरुण की मदद मांगी। जब भगवान वरुण उनके सामने प्रकट हुए, तो ऋषि कश्यप ने उनसे यज्ञ को सफलतापूर्वक करने के लिए असीम प्रसाद का वरदान मांगा। भगवान वरुण ने उन्हें एक पवित्र गाय की पेशकश की जो उन्हें असीमित प्रसाद प्रदान करेगी। फिर उन्होंने ऋषि से कहा कि यज्ञ समाप्त होने के बाद पवित्र गाय को वापस ले लिया जाएगा। यज्ञ कई दिनों तक चला, और पवित्र गाय की उपस्थिति से ऋषि को कभी किसी बाधा का सामना नहीं करना पड़ा। गाय की चमत्कारी शक्ति को जानकर, कश्यप के मन में लालच उत्पन हो गया और हमेशा के लिए गाय के मालिक होने की इच्छा रखता था। उन्होंने यज्ञ समाप्त होने के बाद भी गाय को भगवान वरुण को नहीं लौटाया। भगवान वरुण ऋषि कश्यप के सामने प्रकट हुए और उनसे कहा कि गाय उन्हें केवल यज्ञ के लिए वरदान के रूप में दी गई थी, और अब जब यज्ञ समाप्त हो गया, तो इसे वापस करना पड़ेगा क्योंकि यह स्वर्ग की गाय थी। ऋषि कश्यप ने गाय को वापस करने से इनकार कर दिया और भगवान वरुण से कहा कि ब्राह्मण को जो कुछ भी दिया जाता है वह कभी वापस नहीं मांगा जाना चाहिए, और जो भी ऐसा करेगा वह पापी होगा। इसलिए, भगवान वरुण ऋषि के साथ भगवान ब्रह्मा के सामने प्रकट हुए भगवान ब्रह्मा की मदद मांगी और उन्हें अपने लालच से छुटकारा पाने के लिए कहा जो उनके सभी गुणों को नष्ट करने में सक्षम है। फिर भी, ऋषि कश्यप अपने संकल्प में दृढ़ रहे, जिसने उन्हें श्राप देने वाले भगवान ब्रह्मा को यह कहते हुए क्रोधित कर दिया कि वह एक गोप चरवाहे के रूप में फिर से पृथ्वी पर पैदा होंगे। ऋषि कश्यप ने अपनी गलती के लिए पश्चाताप किया और भगवान ब्रह्मा से उन्हें क्षमा करने के लिए कहा। भगवान ब्रह्मा ने भी महसूस किया कि उन्होंने उन्हें जल्दबाजी में शाप दिया था, और उनसे कहा कि वह अभी भी यादव वंश में एक गोप चरवाहे के रूप में पैदा होंगे, और भगवान विष्णु उनके पुत्र के रूप में पैदा होंगे। इस तरह ऋषि कश्यप वसुदेव के रूप में पैदा हुए और भगवान कृष्ण के पिता बने।
1 Comments
Nice article, good job
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